jai ho

तू सत्य है ,तू जयघोष है 


न हताश हो , न परेशान हो 
तू सत्य है ,तू जयघोष है 
तेरी सदा जय हो 
तेरी सदा जय हो

तू बढ़ता रहे कर्त्तव्य पथ पर 
कर्म कर तू  
बढ़ चल अपने अग्रिम पथ पर 

जीवन की फुआर पर 
तुझे अनगिनत लक्ष्य भेदने होगे 
खुद संसार के अनगिनत  विरक्त 
तुझे मिटाने होंगे 
 

  तुमने अपने कर्मो का ताना बाना    
        बुन डाला होगा 
अब इन कर्मो का प्रायश्चित 
तुमको करना होगा 

हे धर्म पुरुष  हे युगपुरुष 
अब तुमको इस जात पात को
युगो युगो तक इस धरा
से विरक्त करना होगा 
 
राग द्वेष इस जाति धर्म के 
तुमको आज मिटाने होगे 
हे कर्म पुरुष  हे न्याय पुरुष 
तुम्हे सत्य न्याय के नए पौध लगाने होगे 
जीव जीव को आपस में  
स्नेह आज दिखलाना होगा
इस धरती पर प्रेम का सागर 
 तुझे दिखलाना होगा 

हे युग पुरुष ये धरा करती है
 जय घोष तुम्हारा 

तुम कर्म पुरुष हो इस धरा के 
ये  धरा करती है जयघोष तुम्हारा 

कहती धरा सुन पार्थ 

न हताश हो , न परेशान हो 
तू सत्य है ,तू जयघोष है 
तेरी सदा जय हो 
तेरी सदा जय हो

इस राह में कंटक बहुत 
पाँव में तेरे आएंगे 
तू डर मत 
तू बढ़ चल अपने लक्ष्य को 

इन्द्रिय रथ पर सवार हो 
 ये रोकेंगे तेरे लक्ष्य को

तू बढ़ चल अपने लक्ष्य को 
तू बढ़ चल अपने लक्ष्य को 

न हताश हो , न परेशान हो 
तू सत्य है ,तू जयघोष है 
तेरी सदा जय हो 
तेरी सदा जय हो

तू बढ़ता रहे कर्त्तव्य पथ पर 
कर्म कर तू  
बढ़ चल अपने अग्रिम पथ पर 

न हताश हो , न परेशान हो 
तू सत्य है ,तू जयघोष है 
तेरी सदा जय हो 
तेरी सदा जय हो


        अरुण राज के द्वारा स्वरचित कविता

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