सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे --- अरुणराज
सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
हमारा गुनाह सिर्फ इतना था
की हम भी उस दौड़ में शामिल थे
जिस दौड़ में पढ़े लिखे बेरोजगार थे
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
जब हमारी उम्र हुई १८ बरस की
तो हम बहुत खुश हुआ करते थे
की अब मेरा भी वोट है
और ऐसा अंदाज़ा भी न था
की जिन्हे हम संसद में पहुचायेंगे
वो हमारी दलाली खाएंगे
पहुंच कर संसद वो नेता
सिर्फ अपनी तनख्वाह बढाते थे
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
हम आम लोग के सामने एक दूसरे
पर कीचड उछलते थे
हमे क्या पता की
बंद कमरे में वो सब जनता जल के जाम छलकाते थे
आलम कुछ यूँ है की
की एक तरफ अखबार में पूँजीपत चंदा देते है सात्ता रूढ़ि पार्टी को
तो दूसरे कोने में सरकार उन्हें हज़ार करोड़ का ठेका देते थे
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे
एक तरफ चपरासी की भर्ती का इंटरव्यू लेते थे
तो दूसरी तरफ अपने बेटे को सरकारी सनस्था का सचिव घोसित करते थे
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे
नारा देते थे बेरोजगारी और गरीबी मिटने का
गरीबों के नाम खुद की तिजोरी भरते थे
सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे
जब तक रहेगी देश की पूंजी चाँद मुठी हर लोगो के हाथ में
तब तक गरीब जियेगा गरीबी और लाचारी के हालात में
हालात कुछ ऐसे थे
की हम बद से बदतर थे
सरकार के आगे हम लुटे और बेबस थे
अरुणराज
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