अलफ़ाज़
मै और मेरी तन्हाइयों के
कुछ यूँ राज़ थे
कि मेरे गुम हुए यार
मेरे अल्फ़ाज़ थे
जब इस दुनिया को कोरोना ने अकेला कर दिया था
तो मेरी जुबानी मेरे अलफ़ाज़ थे
कैसे कहूं की ये बदले बदले से. थे अंदाज़
इस मिज़ाज़ को सम्हाले रखे
मेरे अलफ़ाज़ l थे
उस रोज़ तुम आए थे
मुझे अहसास दिलाने
तेरे अहसास को पनाह कहने वाले
मेरे अलफ़ाज़ . थे
मै और मेरी तन्हाइयों के
कुछ यूँ राज़ थे
कि मेरे गुम हुए यार
मेरे अल्फ़ाज़ थे
...... अरुण राज ...
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